एक सरोवर में एक कछु आ और दो हंस रहते थे। बहुत ददनों तक वर्षा न होने पर सरोवर सखू गयष। हंस ने कछु ए से कहष “ममत्र, हमें दरू दसू रे गषवाँ चले जषनष चषदहए।“ कछु ए ने कहष, “क्यष तमु मझु े अपने सषथ ले चलोगे क्योंकक मैं तो तम्ु हषरी तरह उड़ नहीं सकतष। दोनों हंसों ने उसकी बषत मषन ली और अपनी ममत्रतष ननभषई। वे एक पतली छड़ी ले आए। उन्होंने कछुए को सलषह दी, “तमु अपने माँहु से इस छड़ी को पकड़ लो। रषस्ते में ककसी भी कषरण से अपनष माँहु नहीं खोलनष।“ कछुआ उनकी बषत मषन गयष।दोनों हंसों ने छड़ी के दोनों मसरों को अपनी चोंच से पकड़ मलयष। कछुए ने भी छड़ी को अपने माँहु से पकड़ मलयष। वे एक गषवाँ से दसू रे गषाँव उड़ रहे थे। एक गषाँव में नीचे खेलते हुए बच्चों के झंडु ने जब यह दृश्य देखष तो वे शोर मचषने लगे। कछुआ खशु ी से माँहु खोलकर कुछ बोलने ही वषलष थष कक छड़ी उसके माँहु से छूट गई और वह धरती पर गगर गयष।